Welcome !!

रसायन विज्ञान

पादप विज्ञान

जीव विज्ञान

विज्ञान स्थल पर आपका स्वागत है|

Creativity is my passion. Logo describes your details about company.

Graphics Design needs vision to create yours unique digital concept.

Responsive and All Browser Compatible Dynamic Web Layouts our target.

पक्षियो की प्रवास उडाने | Bird migration

pakshiyo-kee-pravaas-udaane-flying-bird-migration-hindi-blog-vigyan-sthal

 पक्षी वैज्ञानिकों के लिए 21 मई, 1822 एक अविस्मरणीय दिवस है। उस दिन पहली बार यह प्रामाणिक रूप से सिद्ध हुआ था कि पक्षी लम्बी-लम्बी प्रवास यात्राएं करते है। उस दिन मैकलेनबर्ग, जर्मनी में एक ऐसा लगलग (स्टार्क) पकड़ा गया था जिसकी गर्दन मे बाण घुसा हुआ था। उस बाण पर जो सकेंत अंकित थे वे अफ्रीका के किसी देश के थे। इससे यह आभास हुआ कि यह लगलग अफ्रीका से आया था।

पक्षी की प्रवास यात्राओं के बारे में प्राचीन संस्कृत और यूनानी साहित्यों में उल्लेख मिलते हैं। ऐसे ही उल्लेख "ओल्ड टेस्टामेट" तथा अन्य प्राचीन साहित्य में भी मिले हैं। आज से लगभग दो हजार वर्ष पूर्व अरस्तू ने यह सुझाया था कि पक्षी सर्दियों में शीतनिद्रा लेते है । तेरहवी शताब्दी के आरम्भिक चरण में जर्मनी के सम्राट फ्रेडरिख द्वितीय ने पक्षियों को भूमध्यसागर पर से दक्षिण की ओर उडान भरते देखा था। उन्होंने यह भी सुझाया था कि सर्दियों में यूरोपीय पक्षी दक्षिण की ओर चले जाते है।

अमेरिका के मूल निवासी रेड इंडियन इन पक्षियों को बहुत पसंद करते थे। उन्होने अपने महीनों के नाम भी इन पक्षियों के नामो पर रख लिये थे। मजेदार बात यह है कि लोग इन्हें देखते, मौका मिलने पर इनका शिकार कर लेते, पर वे यह नहीं जानते थे कि पक्षी दरअसल कहाँ से आते थे, क्यों आते थे, और वे वापिस क्यों चले जाते थे। 

जैसा कि आपको ज्ञात है कि केवल पक्षी ही प्रवास-यात्रा करने वाले जीव नहीं है, थलचर, स्तनधारी, जलचर, मछलियां और उभयचर भी प्रवास-यात्रा करते है। परन्तु पक्षियों की प्रवास यात्राये ही सबसे बड़ी, सबसे रोचक और कदाचित सबसे विलक्षण होती है।

प्रवासी पक्षी हजारो किलोमीटर की उडान भरकर हर वर्ष अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचते हैं। जब तक वहां मौसम परिस्थितियां अनुकूल होती हैं वे रहते हैं। फिर, मौसम बदलना आरम्भ होते ही, वे एकदम उड़ान भर कर वापस अपने घर आ जाते हैं- यद्यपि उनके संदर्भ मे 'घर' की परिभाषा हमारी परिभाषा से भिन्न होती है।

हजारों किलोमीटर की प्रवास-यात्रा करने के बाद कुछ जातियों के पक्षी एकदम उसी स्थान और कभी कभी उसी वृक्ष पर ही जाकर रुकते हैं जहाँ वे पिछले अनेक वर्षों से आते रहे है। जगतप्रसिद्ध पक्षी वैज्ञानिक डॉ सलीम अली ने एक बोबन चिड़िया (मोटासिला सिनेरिआ) की लगातार चार वर्षों तक (1942 से 1946 तक) हर वर्ष उनके बम्बई (मुंबई) स्थित घर के बगीचे में साइबेरिया से सर्दी बिताने जाते देखा था। 

दक्षिण अमेरिका के पक्षीवैज्ञानिक पी शावर्टज (Paul A. Schwartz) ने Northern waterthrush  (सीयुरस नावेबोरेंसिस) के अध्ययनों के दौरान यह पाया कि उस प्रजाति के पक्षी कैराकस (वैनेजुला) के उसी वनस्पति उद्यान में, उसी स्थान पर, सर्दियां बिताते है जहां उन्हें छल्ले पहनाये गये थे। पर हर जाति के पक्षी ऐसा नहीं करते। कुछ जाति के पक्षी काफी बड़े क्षेत्र में फैल जाते हैं।

पक्षी थल पर से ही नहीं बड़ी-बड़ी जल राशियों पर से भी हजारों किलोमीटर की उड़ाने भरते हैं। वे लगातार कई दिनों तक उड़ते रहते हैं। आमतौर पर वे 400 मीटर जैसी ऊँचाई पर उड़ते हैं― विशेष रूप से उस समय जब वे सागर पर से उड़ते हैं। पर अनेक पक्षी 8000 मीटर जैसी ऊँचाई पर भी उडान भर लेते है। साइबेरिया से हमारे देश में आने वाली अनेक जातियों की बतखें, हंस, सारस आदि हिमालय की ऊँची-ऊँची चोटियों पर से उड़कर हमारे देश में सर्दी बिताने आती हैं। वे इन चोटियों पर से दिन में ही नहीं रात में भी उड़ान भरती हैं। कीड़े खाने वाले गौरया जाति के पक्षी रात में उड़ाने भरना अधिक पसंद करते है। डोमकौवे जैसे पक्षी माउंट एवरेस्ट तक की ऊँचाई पर भी आसानी से उडान भर लेते है।

आज हमें मालूम है कि संसार में कुल 8580 जातियों के पक्षी पाये जाते हैं। इनमें से लगभग दो तिहाई जातियों के पक्षी नियमित रूप से प्रवास-यात्रा करते हैं। इनमें छोटे पक्षी भी है और बड़े भी। वे पक्षी भी है जो शिकार करते है और वे भी जिनका शिकार किया जाता है। उनमें शाकाहारी भी शामिल हैं और माँसाहारी भी। थल पर ही पूरा जीवन बिता देने वाले भी और जल पक्षी भी। यद्यपि शतुरमुर्ग जैसे उड़ सकने वाले पक्षी प्रवास-यात्रा नहीं करते, परन्तु पेन्गुइन सागर में तैरकर लम्बी प्रवास-यात्रा करते है। पृथ्वी के हर भाग मे पक्षी प्रवास-यात्रा करते हैं। लगभग हर देश में भिन्न-भिन्न मौसमों में अन्य देशों से पक्षी आते रहते है। हमारे देश मे साइबेरिया जैसे ठंडे क्षेत्रों से तो पक्षी आते ही हैं, देश के ठंडे भागों से भी पक्षी गर्म भागों में जाते हैं। साथ ही वे गर्मी और बरसात में भी प्रवास-यात्रा करते हैं। सहारा रेगिस्तान के उत्तरी भागों मे रहने वाला करसर (करसोरियस करसर) और रेगिस्तानी लार्क (एम्मोमेनस सिंकटुरा) गर्मी से बचने के लिए प्रवास-यात्रा करने वाले पक्षियों के ज्वलंत उदाहरण है। 

आमतौर से पक्षियों का प्रवास-यात्रा चक्र एक वर्ष में पूरा हो जाता है, पर कुछ पक्षियों के चक्र में एक वर्ष से अधिक समय लग जाता है। स्टेरना फुस्काटा एक ऐसा ही पक्षी है।

Migratory-birds-flyway
लंबी दूरी के पक्षी प्रवास मार्गों के उदाहरण
स्रोत:- विकिपीडिया

कारण

पक्षी प्रवास का एक मुख्य कारण है― भोजन की तलाश। पर यह ही एकमात्र कारण नहीं है। पक्षी अंडे देने से पहले उपयुक्त स्थल तलाश लेते हैं क्योकि जन्म के कुछ दिन बाद तक उनके बच्चे पर्यावरण के प्रति अधिक संवेदनशील होते है। पर्यावरण के ताप आदि में अधिक घट-बढ़ हो जाने से उन्हें बहुत हानि पंहुच सकती है। अनेक पक्षियों, विशेष रूप से कौवा, रॉबिन जैसे शिकारी पक्षियों के बच्चे जब अंडों से निकलते है उस समय वे दृष्टिहीन, बालविहीन और अत्यन्त कमजोर होते हैं। उन्हें देखभाल की बहुत जरूरत पड़ती है। ऐसी जरूरत तीन महीने या उससे भी अधिक समय तक बनी रहती है। इस दौरान बच्चों को बहुत अधिक भूख लगती है। आश्चर्यजनक प्रतीत होते हुए भी यह सत्य है कि उन्हें एक दिन में कई सौ बार भूख लगती है। इसलिए उन्हें भोजन काफी अधिक मात्रा में चाहिए। इसीलिए अनेक जातियों के पक्षी प्रजनन से पहले ऐसे स्थानों पर चले जाते है जहां उनके बच्चों को सुरक्षा के साथ-साथ पर्याप्त मात्रा मे भोजन भी मिल सके। वैसे भी पक्षियों में उपापचयन की क्रिया अपेक्षाकृत अधिक तीव्र होती है। इसलिए वयस्क पक्षियों को भी अधिक भोजन चाहिए। जिन पक्षियों को एक ही स्थान पर सुरक्षा और पर्याप्त भोजन मिल जाता है वे आमतौर से प्रवास-यात्रा नहीं करते। पर कुछ पक्षी ऐसे भी है जिन्हें एक ही स्थान पर वर्ष भर अनुकूल जलवायु, पर्याप्त भोजन आदि मिलता रहता है फिर भी वे नियम से प्रवास-यात्रा करते है।

सब पक्षी समय-समय पर अपने पंख गिराते रहते हैं। उस अवस्था मे जब उनके पंख नहीं होते वे उड़ नहीं पाते। इसलिए पंख गिरने से पहले हंस और बत्तख जैसे पक्षी ऐसे स्थानों पर पहुँच जाते है जहाँ वे बिना उड़े भी शत्रुओं से अपनी रक्षा कर सके।

पहले अनेक पक्षी वैज्ञानिकों का मत था कि पक्षियों की प्रवास पर निकलने की प्रेरणा और उनके आंतरिक प्रजनन तंत्र की दशा में घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। उन्होंने इस बारे में जो प्रयोग किये उनमें पाया कि सागर तट पर रहने वाले कुछ पक्षी तथा गैन्नेट आदि जातियों के वे पक्षी जो यौन रूप से वयस्क नहीं होते, शीत ऋतु में भी अपने 'शीत गृह' में ही रहे आते हैं।

इसी आधार पर एक ही जाति के नर और मादा पक्षियों के प्रवास-यात्रा करने के तरीकों के अन्तर को समझाने के प्रयत्न किये गये हैं। आमतौर से नर पक्षी अपनी मादाओं की अपेक्षा अपने प्रजनन क्षेत्र मे जल्दी वापस आ जाते है, क्योंकि वृषण डिम्बाशय की अपेक्षा जल्दी विकसित हो जाते है। इसीलिए नर पक्षी मादाओं की तुलना में कम लम्बी प्रवास-यात्रा करते हैं।

पर प्रयोगों में वे पक्षी भी प्रवास-यात्रा करते पाये गये है जिनके प्रजनन अंग निकाल दिये गये थे। अब पक्षी वैज्ञानिकों का मत है कि पक्षियों की यौन परिपक्वता तथा प्रवास-यात्रा के लिए निकलने की प्रेरणा दो स्वतंत्र क्रियाये है। हो सकता है कि कुछ बाह्य या आंतरिक कारक दोनों क्रियाओं को समान रूप से प्रभावित करते हो।

पक्षियों की प्रवास यात्रा पर निकलने की प्रेरणा को वातावरणीय परिस्थितियां, यथा भोजन की उपलब्धि, ताप-परिवर्तन आदि, एक हद तक प्रभावित करती हैं। पिंजरे मे बन्द पक्षियों पर किये गये प्रयोगों में पाया गया है कि दिन की लम्बाई मे घट-बढ़ प्रवास-यात्रा की प्रेरणा का एक मुख्य कारण है। ऐसे पक्षियों को कृत्रिम प्रकाश में रखने पर समय से पूर्व ही प्रवास यात्रा पर निकलने के लिए बेचैन होते पाया गया है। इस बारे मे सिलविया जाति के पक्षियों पर प्रयोग किये गये हैं। ये छोटे पक्षी मध्य और उत्तरी यूरोप में अंडे देते हैं और शरद ऋतु में अफ्रीका के दक्षिणी भाग की ओर चले जाते हैं।

उक्त निष्कर्षों को सिद्ध करने के लिए पक्षी वैज्ञानिकों ने कुछ प्रयोग किये। इनके लिए उन्होंने घोसलों से बसंत ऋतु में नवजात शिशु पक्षी लिये और उन्हें चार भागों मे बांटा। इनमें से दो भागों को जर्मनी ले जाया गया। वहाँ एक भाग को स्थिर ताप पर रखा गया जबकि दूसरे को ऐसे क्षेत्र में रखा गया, जहां हमेशा, 12 घन्टे तक कृत्रिम प्रकाश और 12 घन्टे तक अंधेरा रहता था। बाकी के दो भागों को अफ्रीका में इन पक्षियो के 'शीत निवास' ले जाया गया। यद्यपि चारों भागों के पक्षियों को अलग-अलग परिस्थितियों में रखा गया, पर उन सब में प्रवास यात्रा के प्रति एक सी ही प्रेरणा उत्पन्न होती पायी गई।

कुछ वैज्ञानिकों का मत है प्रवास-यात्रा की प्रेरणा का सम्बन्ध कुछ हार्मोन― गोनेडोट्रॉपिक हॉर्मोन के स्रवण से होता है। ये हॉर्मोन पक्षी के मस्तिष्क के निचले भाग में स्थित अग्र पियूष (एन्टीरियर पिट्युरी) ग्रन्थि से स्त्रावित होते हैं और ये पक्षियों के अंडाशय या वृषण को ही नहीं वरन् अन्य अंगों की क्रियाओं को भी प्रभावित करते है। उदाहरण के लिए ये शरीर मे वसा के निर्माण और भंडारण को भी प्रभावित करते हैं।

बाद में किये गये अध्ययनों में पाया गया कि प्रकाश की मात्रा और अवधि (दिन की लम्बाई) मे बढोत्तरी होने से पियूष ग्रंथि उत्तेजित हो जाती है और वह अधिक मात्रा में गोनेडोट्रापिक हार्मोन स्रवित करने लगती है। बसन्त के प्रारंभ मे प्रवास-यात्रा पर निकलने वाले पक्षी इसके प्रमाण है।

हार्मोनों की स्रवित होने वाली मात्रा में वृद्धि हो जाने से पक्षी बेचैन हो जाते हैं। यह बेचैनी उन पक्षियों मे भी देखी जा सकती है जिन्हें शैशव अवस्था में ही पिंजरो मे बन्द कर दिया गया था और जिन्होंने पहले कभी भी प्रवास-यात्रा नहीं की थी। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि प्रवास यात्रा करने की प्रवृत्ति जन्मजात होती है और वह पक्षियों के आंतरिक हॉर्मोन स्त्रवन चक्र के विकास के दौरान ही उत्पन्न हो गई थी। 

पक्षियों के प्रवसन व्यवहार पर वातावरण के ताप का काफी प्रभाव पड़ता है। वातावरण का ताप कम हो जाने से प्रवास यात्रा के लिए पक्षियों की छटपटाहट बढ़ जाती है जबकि ताप के बढ़ जाने से वे शांत हो जाते हैं।

इसी प्रकार प्रवास-यात्रा की प्रेरणा और पक्षियों के वजन में होने वाली बढ़त में भी सम्बन्ध है। प्रजनन के दौरान पक्षियों का वजन न्यूनतम हो जाता है। प्रजनन के पूर्व बाल उड़ने के बाद उनका वजन बढ़ने लगता है और प्रवसन बेचैनी के प्रथम संकेत मिलने के समय वजन अधिकतम होता है। अधिकतम वजन दिसम्बर मास तक रहता है। उन पक्षियों का जो वर्ष में दो बार बालविहीन होते हैं, दूसरी बार बालविहीन होने के समय वजन इतना नहीं बढ़ता जितना पहली बार बढ़ता है। पर वसंत के आगमन पर पुनः प्रवास यात्रा आरम्भ करने के समय उनका वजन फिर बढ़ जाता है पर उतना नहीं जितना शरद ऋतु मे बढ़ा था।

शरद ऋतु में प्रवास-यात्रा आरम्भ करने के पूर्व पक्षियों की खुराक भी बढ़ने लगती है और प्रवास यात्रा के एकदम पहले वह सबसे अधिक हो जाती है। नवम्बर और दिसम्बर में, यात्रा सम्पन्न हो जाने के बाद, यह कम होने लगती है, पर वसंत ऋतु मे प्रवास यात्रा पुन आरम्भ करने से पहले वह फिर बढ़ने लगती है। प्रजनन के दौरान वह कम हो जाती है।

यद्यपि पक्षियों की खुराक का उनके वजन के बढ़ने से सीधा संबध होता है पर खुराक का सम्बंध वसा के भंडारण से भी है। प्रवास-यात्रा पर निकलने से पहले पक्षी काफी मात्रा में वसा भंडारित कर लेते हैं। वे काफी मोटे हो जाते हैं। यही वसा यात्रा के दौरान शरीर में ईंधन का काम करती है। उस दौरान पक्षी का वसा भंडार तेजी से खाली होता जाता है, पर यात्रा के बाद उतनी ही तेजी से पुनः भर जाता है। वास्तव में उस समय वसा की पूर्ति जितनी तेजी से होती है उतनी तेजी से वर्ष में और कभी नही होती। विचित्र बात यह है कि यात्रा के बाद पक्षी की खुराक मे बहुत वृद्धि नहीं होती।

इससे वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि प्रवास यात्रा पर निकलने से पहले पक्षी का शरीर स्वयं को यात्रा के लिए तैयार कर लेता है। यात्रा से पहले पक्षी की उपापचयन क्रियायें अपेक्षाकृत मन्द पड़ जाती हैं । 

उन पक्षियो की, जो प्रवास यात्रा नहीं करते, खुराक और वसा भंडारण में इस प्रकार की कोई वृद्धि नहीं होती। 

ब्रिटिश पक्षी वैज्ञानिको ने अपने देश की कुछ पक्षी जातियों मे एक विचित्र गुण पाया है। उस जाति के कुछ पक्षी तो निश्चित प्रवास यात्रा पर जाते हैं, कुछ सर्दी की ऋतु में भटकते रहते है जबकि शेष भयंकर सर्दी में भी वही रह आते हैं जहां उन्होने गर्मी बितायी थी। इस संबंध मे सागथ्रश, स्टारलिंग, व्हाइट वेगटेल, रॉबिन, ब्लैक बर्ड, कारमोरेन्ट, कल्लू आदि पक्षियों के उदाहरण दिये जाते हैं। अमेरिकन पक्षी वैज्ञानिकों ने उत्तर अमेरिका के भी कुछ पक्षियो, उदाहरणार्थ साग स्पैरो (मेलोस्पाइजा मेलोडिया), काऊबर्ड (मोलोथ्रश आटर) में यह गुण पाया है।

वैसे यह एक सुविदित तथ्य है कि वयस्क नरों की अपेक्षा मादाओं और कम उम्र के नरो में प्रवास यात्रा करने की प्रवृत्ति अधिक होती है। वयस्क नर यात्रा पर कम दूर तक जाते हैं और जल्दी ही लौट आते हैं। उत्तर अमेरिका के साग स्पैरो, मॉकिंग बर्ड (मिमस पालीग्लोटस) आदि कुछ ऐसे पक्षी है।

ऐसा उन पक्षियो में भी पाया जाता है जो सदियो मे पर्वतों से मैदानों में आ जाते हैं। लेगोपस स्कोटिकस और लेफोफोरस इम्पेयानस की मादाएँ सदियों मे, नरों की तुलना में अधिक नीचे उतर आती हैं।

पक्षी वैज्ञानिकों के अनुसार उक्त प्रवृत्ति का कारण है नर यौन हॉर्मोन। इन हारमोनों का प्रभाव वयस्क नरो पर शरद ऋतु मे अधिक पड़ता है। शरद ऋतु मे ही अधिकांश पक्षी गर्म देशों की ओर अपनी प्रवास-यात्रा आरम्भ करते है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ